मूल अधिकार
भारतीय संविधान के भाग -3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक का प्रावधान किया गया है इसे भारत का अधिकार पत्र (Magna carta) कहा जाता है। इंग्लैण्ड के सम्राट जाॅन द्वारा 1215 में जारी मैग्नाकार्टा प्रथम लिखित दस्तावेज था। इसी को मूल अधिकारों का जन्मदाता माना जाता है। इंग्लैण्ड के मूल अधिकार Bill of right द्वारा जनता को मूल अधिकार प्राप्त हैं।
- अमेरिका के संविधान में मूल अधिकारों का कोई उल्लेख नहीं था किन्तु दसवें संविधान संशोधन द्वारा 1791 में अधिकार पत्र जोड़ा गया। अमेरिका और फ्रांस में प्राकृतिक अधिकारों को मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी गयी।
- किसी भी नागरिक के पूर्ण विकास (जिसमें भौतिक बौद्धिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक) के लिए मूल अधिकार आवश्यक है।
भारत में मूल अधिकार की माँग तथा संवैधानिक स्थिति-
- श्रीमती एनी बेसेण्ट के काॅमन वेल्थ आॅफ इण्डिया बिल 1925 तथा मोती लाल नेहरू रिपोर्ट 1928 में भारतीयों के लिए मूल अधिकार की माँग की गयीं।
- साइमन कमीशन 1927 तथा संयुक्त संसदीय समिति 1934 में मूल अधिकार की माँग को अस्वीकार कर दिया गया जिससे 1935 के भारत सरकार अधिनियम में मूल अधिकारों को शामिल नहीं किया गया।
- संविधान के निर्माण के समय संविधान सभा ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में मूल अधिकार और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए एक समिति का गठन किया। कुछ समय पश्चात जे. वी. कृपलानी की अध्यक्षता में एक उपसमिति का गठन किया गया इन्हीं समिति और उपसमिति की सिफारिशों ने संविधान में मूल अधिकारों को शामिल किया गया।
- संविधान के मूल अधिकारों से सम्बन्धित उपबन्धों को समाविष्ट करने का उद्देश्य एक विधि-शासित सरकार की स्थापना करना जिसमें अल्पसंख्यकों का शोषण न हों, अर्थात् डायसी के “विधि शासन“ (Rule of law) की स्थापना करना।
- भारत संविधान के मूल रूप में भाग -3 में 7 मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया था किन्तु वर्तमान में 6 मूल अधिकार है।
राज्य की परिभाषा - अनुच्छेद 12: -
राज्य में निम्नलिखित शामिल हैं।
- भारत सरकार और भारत की संसद
- राज्य सरकार और विधान मण्डल्
- सभी स्थानीय निकाय, नगरपालिकाएं, पंचायत, जिला बोड आदि।
- अन्य प्राधिकारी जिसका तात्पर्य है वे प्राधिकारी जो शासकीय या संप्रभु शक्ति का प्रयोग करते है।
जैसे - वैधानिक या गैर-संवैधानिक, प्राधिकरण एलआईसी, ओएन जी सी, सेल आदि।
- इसमें शामिल इकाइयों के कार्यों को अदालत में तब चुनौती दी जा सकती है जब वह मूल अधिकारों का हनन कर रहा हो। मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ- (अनुच्छेद 13)
- अनुच्छेद 13 के उपखण्ड 2 में राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो भाग 3 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार में हस्तक्षेप करती है कि इस खण्ड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा शून्य होगी।
- अनुच्छेद 13 मूल अधिकारों का आधार स्तम्भ तथा न्यायालयों को शक्ति देता है कि वह मूल अधिकारों की रक्षा करें।
न्यायिक पुनर्विलोकन - यह शक्ति न्यायालयों को अनुच्छेद 13 द्वारा प्राप्त की गयी है। जो केवल अनुच्छेद 32 तथा अनुच्छेद 226 के द्वारा क्रमशः उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के सम्मिलित रूप को सरकार कहते है। सरकार के अन्तर्गत शक्तियाँ होती है। राज्य की एक शक्ति दूसरी शक्ति में हस्तक्षेप न करें इसलिए इन शक्तियों का पृथक्करण आवश्यक हैं।
- फ्रांसीसी दार्शनिक मान्टेस्क्यू ने सरकार के सभी अंगों की अनियंत्रित शक्ति पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। न्यायिक पुनर्विलोकन की धारणा सीमित शक्ति वाली सरकार के सिद्धांत से हुआ है जिसमें दो विधियाँ हैं।
- न्यायिक पुनर्विलोकन के सिद्धांत को सर्वप्रथम अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिपादित किया था। भारतीय संविधान में न्यायिक पुर्नविलोकन की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 13, 32 और 226 द्वारा प्रदान की गई है।
अनुच्छेद 226 - उच्च न्यायालय को अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए राज्य क्षेत्रों में सर्वत्र रिट निकालने की शक्ति प्रदान करती है।
मूल अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद -
भाग -3 अनुच्छेद 12 से 35
1. समता का अधिकार (Right to Equality) अनुच्छेद 14 से 18
2. स्वतंत्रता का अधिकार (Right ot Freedom) अनुच्छेद 19 से 22
3. शोषण के विरूद्ध अधिकार (Right against Exploitation) अनुच्छेद 23 से 24
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (Right to freedom of
Religion) अनुच्छेद 25 से 28
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (Cultural and Educational
Rights) अनुच्छेद 29 से 30
6. सांविधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional
Remedies) अनुच्छेद 32
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