स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 तक में नागरिकों को दैहिक स्वतंत्रता सम्बन्धी अधिकार प्रदान किये गये हैं। यह मूल अधिकारों का आधार स्तम्भ है।
- संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत 7 मूल अधिकार का प्रावधान था। किन्तु 44 वां संविधान संशोधन 1978 में संपत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया गया अर्थात् 19 (1) के उपखंड च का लोप कर दिया गया।
वाक् स्वतन्त्रता आदि विषयक अधिकार -
- वर्तमान में अनुच्छेद 19 के तहत स्वतंत्रता के 6 अधिकार है।
- भारत के सभी नागरिकों को अपने विचार, शब्द, लेख, पत्र, मुद्रण, चिन्ह या अन्य किसी भी प्रकार से वह अपने विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
- भाषण और विचारों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ “प्रेस की स्वतंत्रता“ भी शामिल है हालांकि अनुच्छेद में इसका उल्लेख नहीं है।
- प्रेस की स्वतंत्रता के अन्तर्गत विज्ञापन और सिनेमा को नहीं माना जाता है।
- भारत में प्रथम प्रेस आयोग 1954 के सुझावों के आधार पर 1956 में प्रेस परिषद अधिनियम पारित किया गया है। यह परिषद सरकार की ओर तथा विरोध दोनों तरफ से सामाजिक पत्रों की शिकायतें सुनता है।
- सूचना अधिकार अधिनियम का मुख्य उद्देश्य देश के नागरिकों को लोक प्राधिकारियों के पास सरकारी कामकाज से सम्बन्धित सूचनाओं को प्राप्त करने का प्राधिकार देता है।
- कानून के तहत अधिकारियों को 30 दिन के अन्दर लोगों के सूचना उपलब्ध कराना होगा।
- जीवन से जुड़ी सूचना 48 घंटे के भीतर उपलब्ध कराने का प्रावधान है। ऐसा न होने पर अधिकारी के खिलाफ दण्ड का प्रावधान किया गया है।
- किन्तु अनुच्छेद 19 के उपखण्ड (2) के तहत यह अधिकार आत्यन्तिक नहीं है इस पर युक्ति युक्त निर्बधन लगाये जा सकते है।
- फोन टेप करना मूल अधिकार का उल्लंघन करना है
- लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में सभाएं, जुलूस, प्रदर्शन और हड़ताल जनता के मुख्य हथियार है। किन्तु अनुच्छेद 19 (1) के तहत केवल उन्हीं प्रदर्शनों को संरक्षण प्रदान करता है जो हिसात्मक तरीके से न किया गया हों। किन्तु प्रदर्शन करने से पहले लोक व्यवस्था के हित में सरकार से आज्ञा लेना आवश्यक है।
- हड़ताल का अधिकार कोई मूल अधिकार नहीं है। भारत की प्रभुता और अखण्डता तथा लोक व्यवस्था के हित में युक्ति-युक्त बन्धन लगाये जा सकते है।
- इस अधिकार के अन्तर्गत सैनिकों और वेश्याओं को संघ बनाने की स्वतन्त्रता नहीं है।
(क) देश के अन्दर (ख) देश के बाहर भ्रमण करने का अधिकार किन्तु अनुच्छेद 19 1) केवल देश के अन्दर भ्रमण का अधिकार देता है।
भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने की स्वतंत्रता - यह अधिकार देश के अन्दर कहीं भी जाने, अस्थायी रूप से रहने और किसी भी हिस्से में व्यवस्थित होने का अधिकार देता है किन्तु राज्य आम लोगों के हितों में तथा अनुसूचित जनजातियों संस्कृति रिवाज के हितों की रक्षा के लिए बाहरी लोगों को उनके क्षेत्र में प्रवेश प्रतिबन्धित करता है। इसके अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष उपबन्ध का प्रावधान है।
कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार - यह अधिकार बहुत विस्तृत है क्योंकि यह नागरिकों को जीवन चलाने के लिए अधिकार देता है। किन्तु राज्य को साधारण हितों की रक्षा के लिए प्रतिबन्धित करने या इसकी स्वतंत्रता के सम्बन्ध में आवश्यक योग्यता निर्धारित करने की शक्ति प्रदान करती है।
- फुटपाथों पर व्यापार करना मूल अधिकार हैं। नगर.पालिका की धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर ऋषिकेष, हरिद्वार व मूनी की सीमा में अण्डों की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाया गया है।
- अनुच्छेद 19 (2) में निम्न आधारों पर प्रावधान है - जिस आधार पर वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्बन्धन लगाये जा सकते हैं।
- राज्य की सुरक्षा - जिसमें आन्तरिक विद्रोह राज्य के विरूद्ध युद्ध छेड़ना, बगावत आदि से राज्य की सुरक्षा का खतरा होने पर।
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के हितों में
- लोक व्यवस्था (Public Order) - वह एक ऐसी स्थिति में जिससे आम जनता पर प्रभाव पड़ता है। लोक व्यवस्था को 1951 के प्रथम संविधान संशोधन के द्वारा प्रतिबंध लगाने के आधार पर शामिल किया गया लेकिन इसमें साधारण उल्लंघन शामिल नहीं है।
- शिष्टाचार और सदाचार (Decency or Morality) - इसको इसलिए सम्मिलित किया गया है ताकि समाज को अश्लील भ्रष्ट तथा अनैतिक विचारों से समाज को बचाया जा सकें।
- न्यायालय की अवमानन (Contempt of Court) - संविधान के अनुच्छेद 129 तथा 215 क्रमशः उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को उनकी अवमानना के लिए दण्ड देने का अधिकार है।
- मानहानि - कोई भी कथन या प्रकाशन जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाता है, किसी व्यक्ति को समाज में घृणा, मजाक, अपमान का पात्र बनाता है। अनुच्छेद 19 (2) के तहत उस पर राज्य प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं।
- अपराध के लिए प्रोत्साहित करना - (Incitement to an offence) - प्रथम संविधान संशोधन 1951 द्वारा यह अधिनियम में 1951 द्वारा जोड़ा गया था।
- भारत की संप्रभुता और अखण्डता - संविधान के 16 संशोधन अधिनियम 1963 द्वारा जोड़ा गया है।
- ऐसे व्यक्ति जिन पर अपराध करने का अभियोग लगाया गया है, अनुच्छेद 20 ऐसे दोषी व्यक्ति की सुरक्षा की व्यवस्था करता है।
- किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए विधि के अन्तर्गत विहित अपराध के लिए दोषी ठहराया जायेगा।
- किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार अभियोजित और दण्डित नहीं किया जायेगा।
- आत्म-अभिशंसन (Self-Discrimination) - किसी भी व्यक्ति को जिस पर कोई अपराध लगाया गया है, उसे अपने विरूद्ध साक्ष्य के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।
- यदि वह स्वयं साक्ष्य के लिए अपनी इच्छा से तैयार हो तो इसका उल्लंघन नहीं है। किसी अपराध के लिए अभियुक्त के परिसर की तलाशी के वारंट के तहत तलाशी लेना उल्लंघन नहीं है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 21 के तहत निम्न अधिकारों को माना है -
- जीवन रक्षण का अधिकार
- मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार
- प्रत्येक व्यक्ति को आजीविका का अधिकार
- साफ पर्यावरण और प्रदूषण रहित पानी और हवा में जीने का अधिकार।
- एकान्तता का अधिकार (त्पहीज जव च्तपअंबल)
- निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार
- हिरासत में शोषण के विरूद्ध अधिकार
- उचित स्वास्थ्य और इलाज का अधिकार
- विदेशी यात्रा का अधिकार
- 14 साल की उम्र तक निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार
- अमानवीय व्यवहार के विरूद्ध अधिकार
- अपील करने का कानूनी अधिकार
- सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान निषेध
- वयस्क बालक एवं बालिका को स्वेच्छा से अन्तर्जातीय विवाह का अधिकार।
- गर्भधारण के पूर्व लिंग का चुनाव महिला के जीवन के अधिकार का उल्लंघन
- महिलाओं का यौन उत्पीड़न से संरक्षण
- निद्रा का अधिकार।
- भारतीय दण्ड संहिता 309 के तहत आत्महत्या का प्रयास करना असंवैधानिक, अवैध और दण्डनीय अपराध है।
अनुच्छेद 22 - बन्दीकरण एवं निरोध के विरूद्ध सांविधानिक संरक्षण - किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी और निरोध से अनुच्छेद 22 द्वारा संरक्षण प्रदान किया गया है। इस अनुच्छेद के खण्ड (1) एवं (2) सामान्य दण्ड - विधि के अधीन गिरफ्तारियों से तथा खण्ड (3) (4), (5) (6), (7) निवारक निरोध विधि के अधीन गिरफ्तारी है।
गिरफ्तार व्यक्ति का संरक्षण: -
- गिरफ्तारी के कारण शीघ्र जानने का अधिकार।
- अपनी पसन्द के अधिवक्ता से बचाव तथा विचार विमर्श का अधिकार।
- जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है उसे 24 घण्टे के अन्दर किसी निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाय।
निवारक निरोध अधिनियम - अनुच्छेद 22 के तहत प्राप्त अधिनियम खण्ड (3) से (7) तक प्रावधान किया गया है किन्तु निवारक निरोध अधिनियम को परिभाषित नहीं किया गया है। किन्तु इनका उद्देश्य है कि किसी अपराध को किये जाने से रोका जाय और अपराध करने वाले सम्भावित व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए।
अब तक संसद द्वारा निम्न अधिनियम पारित किये गये है।
- निवारक निरोध अधिनियम 1950 (Preventive Detention Act 1950) - यह अधिनियम 31 दिसम्बर 1969 तक अस्तित्व में था।
- राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 (National Security Act.½ & NSA
- आन्तरिक सुरक्षा अधिनियम 1971 (Maint-enance of Internal Security Act - MISA) - यह अधिनियम अप्रैल 1979 में समाप्त हो गया।
- विदेशी मुद्रा संरक्षण तथा तस्करी निवारण अधिनियम - 1974 (COFEPOSA) - आर्थिक क्षेत्र में इसे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का दर्जा प्राप्त है।
- आतंकवादी एवं विध्वंसक गतिविधियों अधिनियम 1985 - (Terrorist and Disruptive Activities Prevention Act & TADA)
घोषणा की थी, यह अधिनियम 23 मई 1995 में समाप्त हो गया।
TADA के स्थान पर 2 अप्रैल 2002 को एक नया आतंकवाद निरोधी अधिनियम लागू किया गया। 21
दिसम्बर 2004 को जारी अध्यादेश के जरिये इस अधिनियम को रद्द कर दिया गया।
6. आतंकवादी निरोधी अधिनियम (Prevention of Terrorism Act - POTA) - 2002। इसे 2004 में कांग्रेस की सरकार द्वारा हटाया गया।
6. आतंकवादी निरोधी अधिनियम (Prevention of Terrorism Act - POTA) - 2002। इसे 2004 में कांग्रेस की सरकार द्वारा हटाया गया।
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