संघ: कार्यपालिका 

राष्ट्रपति (President)

संविधान के भाग 5 में संघ के अन्तर्गत अध्याय 1 में कार्यपालिका का वर्णन हैं। ब्रिटेन की शासन व्यवस्था के अनुरूप भारत में संसदीय व्यवस्था की स्थापना की गयी थी। उसी तरह भारतीय संसदीय सरकार में राष्ट्रपति सांविधानिक प्रमुख होता है  किन्तु वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित है जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिपरिषद में जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होते है, जो लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
  • अनुच्छेद 52 से 78 तक राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बारे में उपबन्ध है।
  • संविधान के अनुच्छेद 52 में उपबन्ध है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा। 
राष्ट्रपति पद की योग्यता - अनुच्छेद 58 के अनुसार राष्ट्रपति पद की निम्न अर्हताएं होगी।
  1. भारत का नागरिक हो।
  2. पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. लोक सभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हों अर्थात् उसका नाम किसी संसदीय निर्वाचन-मण्डल में मतदाता के रूप में पंजीकृत हो।
  4. भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो।
नोट: यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर अथवा किसी संघ अथवा राज्य के मंत्रिपरिषद का सदस्य हो तो वह लाभ का पद नहीं है।

राष्ट्रपति का निर्वाचन (Election of President)

भारत का राष्ट्रपति अप्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुना जाता है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए आवश्यक है कि उसके नाम को कम से कम 50 मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित तथा कम-से-कम 50 मतदाताओं द्वारा समर्थित हो। उम्मीदवार रू. 15,000 की धरोहर राशि जमानत के तौर पर निर्वाचन अधिकारी के समक्ष जमा करें। 

निर्वाचक मण्डल: अनुच्छेद 54 के अनुसार -
  1. संसद के दोनों सदन अर्थात लोक सभा तथा राज्य सभा के निर्वाचित सदस्यगण।
  2. राज्यों की विधान सभा के निर्वाचित सदस्य।
  3. केन्द्रशासित प्रदेशों में दिल्ली तथा पांडिचेरी विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य।
नोट:
  1. संसद के दोनों सदन, राज्य विधान सभा के नामांकित सदस्य तथा राज्य विधान परिषदों के निर्वाचित सदस्य और दिल्ली और पांडिचेरी विधान सभा के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं लेते हैं। 
  2. यदि संसद अथवा एक से अधिक राज्यों की विधान मण्डल में रिक्तियाँ हो तो राष्ट्रपति के चुनाव को प्रतिबन्धित नहीं किया जा सकता है।
  3. 70वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992: - अनुच्छेद 54 के तहत राज्य शब्द के अन्र्तगत दिल्ली क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी राज्य और संघ राज्य क्षेत्र पांडिचेरी सम्मिलित है।

राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति - अनुच्छेद 55 में राष्ट्रपति के निर्वाचन का उपबंध है।

  • राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से एक निर्वाचक गण द्वारा होता है।
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न-भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापन में एकरूपता होगी। तथा समस्त राज्यों में आपस में एक रूपता और समस्त राज्यों और संघ में भी ऐसी ही समतुल्यता होगी।
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन के निर्वाचकगण में समस्त राज्यों के मत इस देश की जनता के मत के बराबर होगें। इसके लिए एक विशेष फार्मूला अपनाया है।
  1.  प्रत्येक विधान सभा के निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या, उस राज्य की जनसंख्या को, उस राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों तथा 1000 के गुणनफल से प्राप्त संख्या द्वारा भाग देने पर प्राप्त होगी। एक विधायक के मत मूल्य = ष् राज्य की कुल जनसंख्याष् ध्ष्राज्य विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्याष्  1ध्1000
  2.  संसद के प्रत्येक सदन के निर्वाचित सदस्यों के मतों की संख्या, सभी राज्यों के विधायकों की मतों के मूल्य को संसद के कुल सदस्यों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होती है।   एक सांसद के मतों के मूल्य = ष् सभी राज्यों के विधायकों के मतों का कुल मूल्यष् ध्ष्संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल सदस्य संख्याष् 
  • राज्यों में आपस में तथा दूसरी ओर समस्त राज्यों तथा संघ के बीच एक रूपता प्रदान करने के विचार का उद्देश्य था कि आबादी के आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाए तथा एक व्यक्ति एक वोट के सिद्धांत का पालन किया जाए। अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने का प्रयास है।
  • राष्ट्रपति के उम्मीदवार को निर्वाचित होने के लिए मतों का एक निश्चित भाग प्राप्त करना आवश्यक है।
  • राष्ट्रपति के चुनाव संबंधी-विवाद के बारे में अनुच्छेद 71 में उपबंध दिया गया है जो निम्नलिखित है -
  1. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न विवादों की जाँच उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जायेगा और उसका निर्णय अन्तिम होगा।
  2.  यदि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का निर्वाचन उच्चतम न्यायालय द्वारा शून्य घोषित किया जाता है तो उसकी घोषणा के समय से उसके द्वारा किये गये कार्य अवैध माने जायेंगें। 

राष्ट्रपति का पदावधि - अनुच्छेद 56 के उपबन्धों के अनुसार: - 

  1.  राष्ट्रपति अपने पदग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा।
  2.  राष्ट्रपति अपने पांच साल के कार्यकाल समाप्त होने के उपरान्त भी पद पर बना रहेगा जब तक कि नया निर्वाचित राष्ट्रपति पद ग्रहण नहीं कर लेता है।
  3.  भारतीय संविधान में राष्ट्रपति के लिए ऐसा कोई वर्णन नहीं है कि वह कितनी बार निर्वाचित किया जा सकता है।
  4.  राष्ट्रपति अपने पद का त्याग पाँच वर्ष से पूर्व उपराष्ट्रपति को अपने हस्ताक्षर लेख द्वारा करेगा। इस त्यागपत्र की सूचना उपराष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष को देगा।