संविधानेत्तर आयोग (Extra constitutional commission)


योजना आयोग (Planning Commission):-

योजना आयोग की स्थापना केन्द्रीय मंत्री मण्डल के प्रस्ताव पर 15 मार्च 1950 में पारित किया गया था। संविधान में योजना आयोग के बारे में कोई उपबंध नहीं है। यह संविधानेत्तर संस्था है तथा एक परामर्श - दात्री संस्था है।

गठन -

  • 1946 में के. सी. नियोगी की अध्यक्षता वाली सलाहकार योजना बोर्ड की संस्तुति के बाद 1950 में किया गया।
  • आयोग में सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं है। यह सरकार की इच्छानुसार परिवर्तित होती रहती है।
  • आयोग का अध्यक्ष प्रधानमंत्री तथा एक उपाध्यक्ष; कुछ कैबिनेट मंत्री तथा विशेषज्ञ सदस्य के रूप में नियुक्ति किये जाते है।
  • योजना आयोग के सदस्यों और उपाध्यक्ष का कोई निश्चत कार्यकाल नहीं होता है। 
  • योजना आयोग पूर्णरूपेण केन्द्र निर्मित निकाय है इसमें राज्य सरकारें आयोग में प्रतिनिधित्व नहीं करती है।
  • प्रथम योजना आयोग के उपाध्यक्ष गुलजारी लाल नंदा थे।

कार्य -

  • देश के अन्दर भौतिक संसाधनों और जनशक्ति का अनुमान लगाना तथा राष्ट्र की आवश्यकतानुसार साधनों की वृद्धि का पता लगाना।
  • देश के संसाधनों के सन्तुलित उपयोग के लिए प्रभावी योजना बनाना तथा योजना कार्यक्रमों के चरणों का निर्धारण करना।
  • समय-समय पर योजना को चरणवार प्रगति का अवलोकन तथा आवश्यक उपायों की व्यवस्था करना
  • केन्द्र या राज्यों की समस्याओं का समाधान करने के लिए परामर्श देना।
  • आयोग का काम केवल योजना बनाना उनके कार्यान्वयन के लिए राज्य जिम्मेदार है।

राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council)

योजना आयोग की तरह राष्ट्रीय विकास परिषद भी संविधानेत्तर संस्था है जिसका संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। इसका निर्माण योजना आयोग में राज्यों की भागीदारी के लिए किया गया था। जिस आधार पर सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा 6 अगस्त 1952 को राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन किया गया। यह न तो संवैधानिक निकाय है और न ही कानूनी।

गठन -

राष्ट्रीय विकास परिषद में निम्न सदस्य होते हैं: -

  • इसका अध्यक्ष भारत का प्रधानमंत्री होता है।
  • भारतीय संघ के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और संघशासित प्रदेशों के प्रशासक इसके सदस्य होते है।
  • योजना आयोग के सदस्य तथा केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य भी इसके सदस्य होते है।
  • योजना आयोग का सचिव राष्ट्रीय विकास परिषद् का सचिव होता है।

कार्य -राष्ट्रीय योजना के निर्माण के लिए दिशा-निर्देश तैयार करना:-

  • योजना आयोग की योजनाओं पर विचार करना।
  • राष्ट्रीय आयोग की संस्तुति करना तथा उसके कार्यों की समीक्षा करना।
  • साल में इसकी दो बार बैठक होती है।
  • यह संसद के नीचे सबसे बड़ा निकाय है जो अपनी संस्तुतियों के केन्द्र एवं राज्य सरकारों को भेजती है। यद्यपि यह सलाहकारी निकाय है।
  • वर्तमान में जनसंख्या, अनुसूचित जाति अत्याचार, रोजगार, शिक्षा साक्षरता एवं योजना विकेन्द्रीकरण की छः समितियाँ कार्यरत है।



केन्द्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission)

  1. केन्द्र सरकार के विभागों में प्रशासनिक भ्रष्टाचार को रोकने, उसकी जांच करने के उद्देश्य से 1964 में कार्यपालिका के एक संकल्प के द्वारा की गई।
  2. भ्रष्टाचार पर बनाई गई संथानम समिति (1962-64) की सिफारिश पर गठन हुआ था।
  3. मूल रूप में केन्द्रीय सतर्कता आयोग न तो वैधानिक और न ही संवैधानिक संस्था थी।
  4. राष्ट्रपति के अध्यादेश से सित्मबर 2003 में संसद के पारित विधेयक द्वारा केन्द्रीय सर्तकता आयोग अधिनियम, 2003 में वैधानिक दर्जा दिया गया।

गठन -

  1. केन्द्रीय सतर्कता आयोग में केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त के अलावा दो अन्य सतर्कता सदस्य के रूप में होते है।
  2. केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त तथा सदस्यों की नियुक्ति तीन सदस्यीय समिति जिसमें प्रधानमंत्री, केन्द्रीय गृहमंत्री तथा लोक सभा में विपक्ष के नेता शामिल होते हैं। इनकी सिफारिशों के आधार पर नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। 
  3. इनका कार्यकाल 4 वर्ष अथवा 65 वर्ष की आयु तक जो भी पहले हो अपने पद पर रहते है।
  4. केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त तथा अन्य आयुक्तों को राष्ट्रपति उनके दुराचरण व अक्षमता के आधार पर भी उनके पद से हटा सकता है। 
  5. केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा शर्तें संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्षों एवं सदस्यों के समान निर्धारित है।
  6. केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त का मुख्यालय नई दिल्ली में है
  7. इसकी प्रकृति न्यायिक है।
  8. केन्द्रीय सतर्कता आयोग अपनी वार्षिक कार्यकलापों की रिपोर्ट राष्ट्रपति को देता है जो राष्ट्रपति द्वारा रिपोर्ट को संसद में रखवाता है।