संविधान संशोधन (Constitutional Amendment)
भारतीय संविधान एक लिखित संविधान होते हुए भी पर्याप्त परिवर्तनशील संविधान है। भारतीय संविधान नम्यता-अनम्यता का अनोखा मिश्रण है। विश्व के संविधानों को प्रायः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है।
- नम्य संविधान
- अनम्य संविधान
- संघीय संविधान अनम्य होते है इसलिए उनके संशोधन की प्रक्रिया कठिन और जटिल होती है जैसे अमेरिका, आस्ट्रेलिया।
- लिखित संविधान के विकास का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत ‘औपचारिक संशोधन‘ ही है।
- संविधान के भाग 20 के अंतर्गत अनुच्छेद -368 में संविधान से संबंधित प्रक्रिया का विस्तृत उपबंध है।
- संशोधन की दृष्टि से संविधान के विभिन्न उपबन्धों को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
1. साधारण बहुमत - नये राज्यों का निर्माण, राज्य के क्षेत्र, सीमा और नाम में परिवर्तन आदि 3, 4, 169 और 239.1 अनुच्छेद आते है। भारतीय संसद इन धाराओं में साधारण बहुमत द्वारा संशोधन कर सकती है। ये विषय कोई विशेष संवैधानिक महत्व के नहीं होते है। ऐसी संशोधन संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है।
2. विशेष बहुमत द्वारा - इस प्रकार के संविधान संशोधन में वे अनुच्छेद आते है जिन्हें संसद में दो तिहाई (2/3) बहुमत से संशोधन किया जा सकता है। संविधान संशोधन का प्रस्ताव किसी भी सदन में रखा जा सकता है। पेश विधेयक सदन के विशेष बहुमत से पारित किया जाना चाहिए। विशेष बहुमत से पारित विधेयक दूसरे सदन में भी विशेष बहुमत से पारित होकर राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है। जो राष्ट्रपति द्वारा सहमति मिलने पर विधेयक अधिनियम के रूप में हो जाता है।
- विशेष बहुमत - अनुच्छेद -368 के उपबन्ध के अनुसार यह विधेयक प्रत्येक सदन के कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा अर्थात कुल सदस्य संख्या के 50ः तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई से कम न हों। अर्थात् आधे से कम नहीं होना चाहिए।
- नोट: कुल सदस्य संख्या का तात्पर्य है कि संविधान में दी गयी या संवैधानिक प्राधिकारी द्वारा नियत की गई संख्या।
- साधारण विधेयक के मामले में जब किसी विधेयक पर संसद के दोनों सदनों में असहमति हो जाती है तो अनुच्छेद 108 के तहत दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाने का उपबन्ध है। यह प्रक्रिया संविधान संशोधनों पर लागू नहीं होती है।
- संविधान संशोधन के दोनों सदनों में प्रस्तुत के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक नहीं है।
- अनुच्छेद -368 के अन्तर्गत राष्ट्रपति संशोधन विधेयक पर अनुमति के लिए बाध्य है। किन्तु अनुच्छेद -111 के अनुसार जब साधारण विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजे जाते है तो राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए वापस लौटा सकता है।
3. विशेष बहुमत तथा राज्यों द्वारा अनुसमर्थन -
- इस प्रकार की विधि में वे महत्वपूर्ण उपबन्ध आते है जो संघीय ढाँचे से सम्बन्धित है। निम्न संशोधन के लिए संसद के प्रत्येक सदन के दो तिहाई सदस्यों का बहुमत तथा कम से कम 50ः राज्यों के विधान मण्डल का अनुसमर्थन आवश्यक है।
- राष्ट्रपति का निर्वाचन - अनुच्छेद 54-55।
- संघ तथा राज्यों की कार्यपालिका - शक्ति का विस्तार - अनुच्छेद 73, 162।
- संघ तथा राज्य न्यायपालिका - अनु. 124-147, 214-231, 241।
- संघ और राज्यांे के बीच विधायी शक्ति का विवरण - अनुच्छेद 245, 255।
- संसद् में राज्यों का प्रतिनिधित्व - अनुसूची 4।
- सातवीं अनुसूची की सूची से संबन्धित।
- अनुच्छेद - 368 से सम्बन्धित उपबन्धों में।
- जिस उपबन्धों का संबंध केन्द्र और राज्य दोनों के अधिकार क्षेत्रों से है, उनमें संशोधन न तो केन्द्र कर सकता है और न ही राज्य। इस जटिल प्रक्रिया में दोनों सदनों द्वारा पारित होने के पश्चात राज्यों की विधान सभाओं द्वारा अनुमोदित करने के लिए भेजा जाता है। जब राज्यों की विधानसभाओं द्वारा उसे अनुमोदित कर दिया जाता है तब उसे राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजा जाता है।
- अनुच्छेद 13 की कोई बात अनु. 368 के अधीन किए गए संशोधन को लागू नहीं होगी।
- भारत में मौलिक अधिकारों को अनु. 368 के अधीन पारित अधिनियम द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
- ‘न्यायिक पुनर्विलोकन‘ संविधान का आधारभूत ढाँचा है, इसे संविधान संशोधन द्वारा अपवर्जित नहीं किया जा सकता है। संसद द्वारा पारित कोई भी सांविधानिक संशोधन न्यायालयों को इसकी विधि मान्यता की जाँच के लिए नहीं रोक सकता है।
- अनु. 368 के तहत संसद संविधान के मूल ढाँचे को प्रभावित किए बगैर मूल अधिकारों समेत संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार आधारिक लक्षणों की संख्या 19 है।
संविधान संशोधन अधिनियम 1951: -
- सामाजिक और आर्थिक तथा पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए राज्यों को अधिक शक्तिशाली बनाना।
- कानून की रक्षा के लिए संपत्ति अधिग्रहण की आदि की व्यवस्था।
- भूमि सुधार एवं न्यायिक समीक्षा से जुड़े अन्य कानून को नौवीं सूची में स्थान दिया गया है।
पाँचवा संशोधन अधिनियम 1955: -
- राष्ट्रपति को राज्य विधानमंडल का समय निर्धारण करने और केन्द्रीय विधान मंडल के प्रभावी होने पर राज्य के क्षेत्र, सीमा एवं नाम मसले पर अपने विचार प्रकट करने की और अधिक शक्ति दी गई है।
छठा संशोधन अधिनियम 1956: -
- केन्द्रीय सूची में नए विषयों का जुड़ाव, जैसे - अंतर्राज्यीय व्यापार और वाणिज्य के तहत वस्तुओं की खरीद-बिक्री पर कर और इसी संबंध में राज्यों की शक्तियों पर पाबंदियाँ।
सातवां संशोधन अधिनियम 1956: -
- राज्यों के चार वर्गों की समाप्ति, जैसे - भाग ।, भाग ठ, भाग ब् और क् इनके स्थान पर 14वें एवं छह केन्द्रशासित प्रदेशों की स्वीकृति।
- केन्द्रशासित प्रदेशों के उच्च न्यायालयों के न्यायक्षेत्र में विस्तार।
- दो या उससे अधिक राज्यों के बीच सामूहिक न्यायालय की स्ािापना।
- उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश एवं कार्यकारी न्यायाधीश की नियुक्ति की व्यवस्था।
नौवां संशोधन अधिनियम 1960: -
- केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में भारत पाक समझौता (1958) के तहत बेरूबारी (पश्चिम बंगाल स्थित) की स्थापना।
11वां संशोधन अधिनियम 1961: -
- उपराष्ट्रपति के चयन प्रणाली में परिवर्तनः संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की बजाय चुनाव काॅलेज की व्यवस्था।
- राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को उपयुक्त चुनाव काॅलेज में रिक्तता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है।
12वां संशोधन अधिनियम 1962: -
- गोवा, दमन और दीव भारतीय संघ में शामिल।
15वां संशोधन अधिनियम 1963: -
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति उम्र 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष।
- उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्ति न्यायाधीश की किसी उच्च न्यायालय में कार्यभारी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की व्यवस्था।
21वां संशोधन अधिनियम 1967: -
- सिंधी भाषा आठवीं अनुसूची में 15वीं भाषा के रूप में शामिल।
22वां संशोधन अधिनियम 1969: -
- असम में से एक अलग स्वायत राज्य मेघालय का निर्माण।
24वां संशोधन अधिनियम 1971: -
- संसद को यह अधिकार कि वह संविधान के किसी भी हिस्से का चाहे वह मूल अधिकार हो, संशोधन कर सकती है।
- राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक संशोधन विधेयक को मंजूरी दी जानी जरूरी।
31वां संशोधन अधिनियम 1972: -
- लोकसभा सीटों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 की।
36वां संशोधन अधिनियम 1975: -
- सिक्किम को भारतीय संघ का पूर्ण राज्य बनाकर दसवीं अनुसूची को समाप्त कर दिया गया।
42वां संशोधन अधिनियम 1976: -
- उद्देशिका में तीन नए शब्द जोड़े गए (समाजवादी, धर्म निरपेक्ष एवं अखंडता)।
- नागरिकों द्वारा मूल कत्र्तव्यों को राज्य नीति निदेशक सिद्धांत के भाग प्ट में एक नया भाग । के अन्तर्गत जोड़ा गया।
- राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह के लिए बाध्यकारी कर दिया गया।
- लोकसभा एवं विधानसभा के कार्यकाल में बढ़ोत्तरी।
- राज्य नीति निदेशक सिद्धांत में तीन नए निर्देशित सिद्धांत जोड़े गए, समान न्याय और निःशुल्क कानूनी सुविधा, औद्योगिक प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी एवं पर्यावरण वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा।
- राज्य में राष्ट्रपति शासन के कार्यकाल में एक बार में छह माह से एक साल तक बढ़ोत्तरी।
- पांच विषयों का राज्य सूची में संयुक्त सूची में स्थानांतरण जैसे - शिक्षा, वन, वन्य जीवों एवं पक्षियों की सुरक्षा, नाप-तौल और न्याय प्रशासन, संविधान एवं उच्चतम और उच्चन्यायालय के अलावा सभी न्यायालयों का संगठन।
- अखिल भारतीय विविधि सेवा के निर्माण की व्यवस्था।
नोट: अनुच्छेद 368 के तहत संसद की वर्तमान स्थिति में वह संविधान के मूल ढ़ांचे को बिना नुकसान पहुंचाये मूल अधिकारों सहित किसी भी भाग में संशोधन कर सकता है। अभी तक उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित आधारभूत ढांचे को मान्यता दी है -
- विधि का शासन
- समता का अधिकार एवं शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत।
- संविधान की सर्वोच्चता
- परिसंघवाद
- पंथ निरपेक्षता
- देश का प्रभुत्वसम्पन्न, लोकतांत्रिक गणतांत्रिक प्रकृति।
- संसदीय शासन व्यवस्था।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद 32, 136, 141 और 142 के अधीन प्राप्त शक्तियाँ।
- मूल अधिकारों एवं निदेशित सिद्धांतों के मध्य सहमति एवं सन्तुलन।
- संसद की संविधान संशोधन के संबंध में समिति शक्तियाँ
- राष्ट्र की एकता एवं अखंडता
- समानता का सिद्धांत।
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन प्रणाली।
“न्यायायिक पुनर्विलोकन“ संविधान का आधारभूत ढाँचा हैः इसे संविधान संशोधन द्वारा भी अपवर्जित नहीं किया जा सकता।
44वां संशोधन अधिनियम 1976: -
- 42वें संशोधन में लोकसभा एवं राज्य विधानमंडल के कार्यकाल में की गई बढ़ोतरी को संशोधित कर पूर्ववत कर दिया गया (5 वर्ष)।
- संसद एवं राज्य विधानमंडल में कोरम की आवश्यकता को पूर्ववत रखा।
- राष्ट्रीय आपदा के संबंध में ‘आंतरिक विघ्न को सशस्त्र विद्रोह‘ माना गया।
- मूल अधिकारों की सूची में संपत्ति का अधिकार समाप्त कर इसे कानूनी अधिकार बना दिया गया तथा अलग से अनुच्छेद 300 (क) के अंतर्गत रखा गया है।
- अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा दिए गए मूल अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में निलंबित नहीं किया जा सकता है।
52वां संशोधन अधिनियम 1985: -
- इसके तहत संसद सदस्य एवं राज्य विधानमंडल के सदस्य को दल-बदल के मामले में अयोग्य ठहराने की व्यवस्था दी गई है और इसके लिए विस्तार के लिए दसवीं अनुसूची को जोड़ा गया है।
61वां संशोधन अधिनियम 1989: -
- लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में मतदान की उम्र सीमा 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
70वां संशोधन अधिनियम 1992: -
- राष्ट्रपति के चुनाव में चुनाव काॅलेज के रूप में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली विधानसभा के सदस्यों एवं केन्द्रशासित राज्य पांडिचेरी को भी जोड़ा दिया गया।
71वां संशोधन अधिनियम 1992: -
- कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। इसके साथ ही अनुसूचित भाषाओं की संख्या बढ़कर 18 हो गई।
73वां संशोधन अधिनियम 1992: -
- पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक स्थिति एवं सुरक्षा प्रदान की गई। इस उद्देश्य के लिए संशोधन में नया भाग प्ग् जोड़ा गया जिसे ‘पंचायत‘ नाम दिया गया और नई 11वीं अनुसूची में पंचायत की 29 कार्यकारी चीजें जोड़ी गई।
74वां संशोधन अधिनियम 1992: -
- शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक स्थिति एवं सुरक्षा प्रदान की गई। इस उद्देश्य के लिए संशोधन में नया भाग प्ग्। जोड़ा गया जिसे ‘नगरपालिकाएं‘ नाम दिया गया और नई ‘बारहवीं‘ सूची में नगरपालिकाओं में 18 क्रियात्मक चीजें जोड़ी गई।
84वां संशोधन अधिनियम 2001: -
- लोक सभा एवं राज्य विधानसभा सीटों के पुननिर्धारण पर 25 वर्ष के लिए (2026 तक) पाबंदी बढ़ाई गई। ऐसा जनसंख्या समिति मापन के तहत किया गया। दूसरें शब्दों में, लोकसभा एवं विधानसभाओं में सीटों की संख्या 2026 तक रहेगी। यह व्यवस्था भी की गई कि केन्द्रशासित राज्यों का अनुपात 1991 की जनगणना के आधार पर होगा।
86वां संशोधन अधिनियम 2001: -
- प्राथमिक शिक्षा को मूल अधिकार बनाया गया। नए अनुच्छेद 21 अ में घोषणा की गई कि ‘राज्यों को 6 से 14 वर्ष तक के आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए।‘
- नीति निर्धारक सिद्धान्तों के मामले में अनुच्छेद 45 की विषय वस्तु बदली गई जो निम्न है - ‘राज्यों को बच्चों को बचपन में देखभाल एवं उनकी शिक्षा पर उनके छह वर्ष पूरे होने तक देखभाल करनी चाहिए।‘
- अनुच्छेद 51 ए के तहत एक नया मूल कत्र्तव्य जोड़ा गया जिसे पढ़ा गया - ‘यह हर भारतीय नागरिक का कत्र्तव्य होना चाहिए कि वह अपने बच्चों को चाहे वह उसके माता-पिता हो या अभिभावक 14 वर्ष की उम्र तक शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराए।‘
91वां संशोधन अधिनियम 2003: -
- केन्द्रीय मंत्रिपरिषद् में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की अधिकतम संख्या लोक सभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होंगी। (अनुच्छेद 75 (1 ए)।
- संसद के किसी भी सदन यदि दलबदल के आधार पर सदस्यता के लिए अयोग्य करार दिया जाता है तो ऐसी सदस्यता मंत्री होने पर मंत्री पद के लिए भी अयोग्य होगा (अनुच्छेद 75 (1बी)।
- राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की अधिकतम संख्या विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी किन्तु राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 से भी कम नहीं होगी।
- दसवीं अनुसूची में वर्णित वह प्रावधान जिसके अनुसार यदि किसी दल के एक-तिहाई सदस्य दलबदल करते है तो उन्हें अयोग्य घोषित करने का प्रावधान समाप्त कर दिया गया।
92वां संशोधन अधिनियम 2003: -
- संविधान की आठवीं अनुसूची में चार अन्य भाषायें जोड़ी गई। ये भाषायें हैं - बोडो, डोगरी, मैथिली एवं संथाली। इसके साथ अनुसूचित भाषाओं की कुल संख्या 22 हो गयी।
93वां संशोधन अधिनियम 2005: -
- राज्यों को विशेष एवं पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण करने हेतु विशेष प्रावधान करने की शक्ति प्रदान करता है।
संविधान (94वां संशोधन) अधिनियम, 2006: -
- मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 और बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 द्वारा झारखण्ड और छत्तीसगढ़ दो नए राज्य बनाये गए हैं।
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